Untitled by Bharatendu Harishchandra प्रभु निज अनगन सुभग असीसा । बरसहु सदा बिजयिनी-सीसा । देहु निरुजता जस अधिकारा । कृषक, राजसुत कै अधिकारी । करहिं राज को संभ्रम भारी । निकट दूर के सब नर नारी । करहिं नाम आदर विस्तारा । Tags: Short PoemsRate this poem: Report SPAM Reviews Post review No reviews yet. Report violation Log in or register to post comments