Untitled

प्रभु निज अनगन सुभग असीसा ।
बरसहु सदा बिजयिनी-सीसा ।
देहु निरुजता जस अधिकारा ।
कृषक, राजसुत कै अधिकारी ।
करहिं राज को संभ्रम भारी ।
निकट दूर के सब नर नारी ।
करहिं नाम आदर विस्तारा ।

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