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मन में इसी सुविचार का सुविचार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो
जनतंत्र के जज़्बात को जीमें नहीं
जोगी की या जुदेव की नाराज़गियाँ
नभ में कबूतर तो दिलेरी से उड़ें
ना हो दलेरों की कबूतर बाजियाँ
कौवों का गिद्धों का न स्वेच्छाचार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो

रूखे पड़े दिल बेरुखी से भर गए
पड़ती नहीं है प्रेम की परछाइयाँ
सब तेल घी तो तेलगी जी पी गए
बाकी कहाँ है स्नेह की चिकनाइयाँ
चिकनाइयों पर यों ना अत्याचार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो

खंदक में खुंदक से किया बंधक जिसे
लो तेल लेकिन गंध गंधक की न हो
सहमे हुए दहले हुए दिल में कभी
आतंक से बढ़ती हुई धक-धक न हो
दिल में गुणों की गुनगुनी गुंजार हो
सन चार में बस प्यार का संचार हो

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