Untitled

जब आवे दिन
तब देह बुझे या टूटे, इन
आँखों को
हँसती रहने देना।

हाथों ने बहुत अनर्थ किये
पग ठौर-कुठौर चले,
मन के
आगे भी खोटे लक्ष्य रहे
वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे

पर आँखों ने
हार
दु:ख
अवसान
मृत्यु का
अंधकार भी देखा तो
सच-सच देखा।
इस पार
उन्हें जब आवे दिन -
ले जावे
पर उस पार
उन्हें
फिर भी आलोक कथा
सच्ची कहने देना :
अपलक
हँसती रहने देना
जब आवे दिन

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