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कहाँ तेरी मंज़िल कहाँ है ठिकाना
मुसाफ़िर बता दे कहाँ तुझको जाना
कहाँ तेरी मंज़िल ...
गगन में उड़ने वालों का भी गुलशन रैन-बसेरा है
घर की ओर चले राही तो धुँधली शाम सवेरा है
सूरज-चाँद-सितारे हैं तो उनकी भी मंज़िल है
मंज़िल है तो जहाँ भी जाए राह तेरी झिलमिल है
बिन मंज़िल बेकार है ग़ाफ़िल, क़दम भी उठाना
मुसाफ़िर बता दे...
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