Untitled by Ram Vilas Sharma दूर ऽऽ लकदक पहाड़ियों से घिरी नीलाभ झील पर पसरा है मुलायम सन्नाटा स्पन्दित कर दिया अचानक उसका रोम-रोम रिमझिम फुहारों ने ऎसे में लगती है कितनी सुहानी झील की थरथराती साँवली देह । Rate this poem: Report SPAM Reviews Post review No reviews yet. Report violation Log in or register to post comments