Untitled
पावस ऋतु
प्रियतम की आस
मन मयूर
आने को फिर
ठंडी ठंडी फुहार
झूमते वृक्ष
भीगा आँचल
चितचोर मौसम
बिहंसे मन
पक्के हैं टैंक
पानी से लबरेज
छोटे मगर
चतुर्दिक दृश्य
भवनों के जंगल
बहुमंजिले
लगता हंस
बगुला या भगत
दिल में चोर
बसेरा कहाँ
अब नहीं जंगल
चिंतित मोर
सुंदर तन
बदसूरत पाँव
वाह रे भाग्य
स्वार्थ में अँधा
आखिर कब तक
यह इंसान
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