Untitled

मै लाख सच था, मगर सच पा ध्यान देता कौन,
बिकी हुई थीं ज़बाने बयान देता कौन ।

जब आँधियों ने किया था हमारे घर का सफ़र,
सभी थे महवे तमाशा अज़ान देता कौन ।

न रंगता अपना ही चेहरा तो और क्या करता,
हमारे खून को 'काज़िम' अमान देता कौन ।।

Rate this poem: 

Reviews

No reviews yet.