Untitled

गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं
आप कहते हैं जो ऐसा तो बज़ा कहते हैं

वाकई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं
ना वफ़ा कहते हैं जिस को ना ज़फ़ा कहते हैं

हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश
हम तो इन्सान को दुनिया का खुदा कहते हैं

तेरी सूरत नजर आई तेरी सूरत से अलग
हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्न नुमां कहते हैं

शिकवा-ए-हिज़्र करें भी तो करें किस दिल से
हम खुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं

तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयान नामुमकिन
फायदा क्या है मगर यूं जो जरा कहते हैं

लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकोशी को
हम तो इन बातों अच्छा ना बुरा कहते हैं

औरों का तजुरबा जो कुछ हो मगर हम तो फ़िराक
तल्खी-ए-ज़ीस्त को जीने का मजा कहते हैं

Rate this poem: 

Reviews

No reviews yet.