Untitled

अपने ग़म से हटकर कब था
वो इन्साँ पैग़ंबर कब था
जिसके बूढ़े सर पर पत्थर
बचपन उसका पत्थर कब था
कातिल की आँखों में रहता
रोती माँ का मंज़र कब था
प्यास समझता क्या औरों की
प्यासा रहा समंदर कब था
रोज बनानी थी छत उसको
उसके सर पर अंबर कब था

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